पीएम मोदी द्वारा की गई वंशवाद की बात पर विपक्षी नेताओं के पेट दर्द क्यों!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में वंशवाद की बुराइयों पर बात की तो भूचाल आ गया। मोदी ने सिर्फ इतना ही कहा था कि राजनीतिक वंशवाद लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन है और इसे जड़ से उखाड़ना है।
राजेन्द्र तिवारी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में वंशवाद की बुराइयों पर बात की तो भूचाल आ गया। मोदी ने सिर्फ इतना ही कहा था कि राजनीतिक वंशवाद लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन है और इसे जड़ से उखाड़ना है। पीएम ने यह भी कहा था कि अब केवल ‘सरनेम’ के सहारे चुनाव जीतने वालों के दिन लदने लगे हैं।
पीएम ने कहा की ऐसा सामान्य युवा के राजनीति में आने से हो रहा है। उन्होंने कहा की वंशवाद का जहर लोकतंत्र को कमजोर करता रहेगा। इसलिए सामान्य घर के युआओ को और ज्यादा राजनीति में आना चाहिए। बस इसी पर हर तरफ से हमले से शुरू हो गए। यह सच है कि आज शायद ही कोई पार्टी ऐसी हो, जहां भाई-भतीजावाद न दिखायी पड़ती हो। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जिस वंशवाद की बात कर रहे हैं, उससे प्रमुख विपक्षी दल कन्नी काट रहे हैं।
असलियत तो यह है कि प्रधानमंत्री जिस वंशवाद की बात की है, उससे कांग्रेस, सपा, बसपा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, डीएमके, लालू के जनता दल, शिवसेना जैसी विपक्षी पार्टियों को मिर्ची लगेगी ही। असली वंशवाद वह है कि किसी पार्टी का कोई मुखिया है तो भविष्य में उसका पुत्र अथवा पुत्री ही दल का अध्यक्ष बने अथवा सत्ता मिलने पर वही प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बने। सभी जानते हैं कि अन्य दलों की भांति भाजपा में भी नेता पुत्रों, पुत्रियों, रिश्तेदारों आदि को टिकट दिये गए, उन्हें मंत्री तक बनाया गया, लेकिन कांग्रेस, सपा, रालोद, राजद, राकांपा, शिवसेना आदि से भाजपा इसलिए अलग दिखती है कि उसमें मुखिया के स्तर पर आज तक वंशवाद नहीं दिखा।
कुछ सवाल हैं जिनका जवाब विपक्षी नेताओं को देना ही होगा। क्या कांग्रेस में गांधी-नेहरू परिवार के अलावा किसी के पास अध्यक्ष बनने की योग्यता नहीं है? क्या सपा में मुलायम के बाद उनके पुत्र अखिलेश ही सबसे काबिल राजनेता हैं? शिवपाल और आजम क्यों नहीं? बसपा में मायावती के बाद उनके भाई-भतीजे ही सबसे काबिल हैं, जिनको मायावती अपनी विरासत सौंप रही हैं। रालोद मुखिया अजित सिंह के बाद सबसे योग्य उनके जयंत चौधरी सबसे योग्य माने गए, कोई और नेता क्यो नहीं। महाराष्ट्र में भी शरद पवार की पुत्री ही सबसे काबिल नेता हैं कि पवार को अपने योग्य भतीजे तक को किनारे करना पड़ा। तमिलनाडु में करुणानिधि के पुत्र ही सबसे योग्य माने गये, क्यों? आंध्र प्रदेश में एक समय तेलुगु देशम पार्टी के मुखिया एनटी रामाराव ने अपने दामाद चंद्रा बाबू नायडू को ही आगे बढ़ाया था। शिवसेना में सबसे काबिल उद्धव ठाकरे माने गये और उसके बाद उनके पुत्र आदित्य ठाकरे। बाबू समझ गये न। यह है असली वंशवाद। भाजपा के संबंध में क्या कोई बता सकता है कि इस संगठन के अध्यक्ष पर जो रहा हो, उसका भाई-भतीजा, पुत्र-पुत्री अथवा कोई रिश्तेदार भी कभी अध्यक्ष अथवा मुखिया की भूमिका में रहा हो। तो ये फर्क है भाजपा और वंशवाद में। वंशवाद के पुजारयिों को इस पर मंथन करना चाहिए।