छत्तीसगढ़: वादे से मुकर गई कांग्रेस सरकार, हसदेव के जंगलों की कटाई शुरु; महिलाओं ने नम आंखों से दी पेड़ों को अंतिम विदाई
2016 में राहुल गांधी ने हसदेव अरण्य में वादा किया था कि अगर उनकी सरकार इस प्रदेश में बनती है तो वो इस जंगल को किसी भी कीमत पर उजड़ने नहीं देंगे।
छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार ने अंतत: हसदेव अरण्य क्षेत्र के परसा कॉल ब्लॉक और परसा ईस्ट केते बासन ब्लॉक के विस्तार को 6 अप्रैल 2022 को आधिकारिक रूप से मंजूरी दे दी।
बीते एक दशक से भारत के गिने चुने सघन, वन्य जीवों व जैव विविधतता से समृद्ध और पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से हसदेव अरण्य में कोयला खदानों का लगातार विरोध हो रहा है। पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में शामिल इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण आदिवासी समुदायों के लिए इस जंगल के बिना अपनी ज़िंदगी की कल्पना करना भी मुश्किल है।
जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण के इस गंभीर चुनौती भरे दौर में हसदेव अरण्य जैसे जंगल को जिसे मध्य भारत के फेफड़े कहा जाता है, कॉर्पोरेट के मुनाफे के लिए तबाह किया जाना किसी भी तर्क से उचित नहीं ठहराया जा सकता।
बीते एक दशक से स्थानीय ग्राम सभाओं के संगठन हसदेव बचाओ संघर्ष समिति ने इस अमूल्य जंगल को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए हैं। इसके अलावा केंद्रीय वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से संबद्ध स्वायत्त संस्थाएं जैसे वन्य जीव संस्थान (डबल्यूआईआई) और भारतीय वानकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) ने भी इस प्राकृतिक जंगल और वन्य-जीवों के नैसर्गिक पर्यावास और समृद्ध जैव विविधतता के मद्देनजर गैर वानिकी गतिविधियों को लेकर गंभीर चिंता जताई।
हालांकि इन तमाम पहलुओं को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार भी यहां कोयला खनन को लेकर कुछ समय तक ऊहापोह की स्थिति में रही, लेकिन हाल ही में जिस तरह से राजस्थान में कोयले की कमी की खबरें मुख्य धारा मीडिया में सुर्खियां बनीं उसके लिए छत्तीसगढ़ सरकार को जिम्मेदार बताया गया।
क्योंकि ये दोनों कोल ब्लॉक्स राजस्थान राज्य विद्युत निगम को आबंटित हैं जिन्हें एमडीओ के जरिये अडानी को खनन की ठेकेदारी सौंपी गयी है। इस लिहाज से इसे अडानी के हित और मुनाफे से जोड़ कर देखा जा सकता है।
हसदेव अरण्य को लेकर आयी दो महत्वपूर्ण संस्थाओं भारतीय वन्य जीव संस्थान (डब्ल्यूआाईआई) और भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) की संयुक्त और अलग-अलग दो रिपोर्ट्स को कांग्रेस नीत छत्तीसगढ़ सरकार ने न केवल नजरअंदाज किया है, बल्कि इन दोनों रिपोर्ट्स के खिलाफ जाकर हसदेव अरण्य के सघन और समृद्ध नैसर्गिक वन क्षेत्र में कोयला खदानों के लिए रास्ता बनाया है।
उल्लेखनीय है कि हसदेव अरण्य में जो कोयला खदानें प्रस्तावित हैं वो राजस्थान राज्य विद्युत निगम को आबंटित हैं जिन्हें संचालित करने का जिम्मा अडानी कंपनी को एमडीओ के तहत प्राप्त है। यानी कांग्रेस नीत दो राज्य सरकारें अडानी के लिए केंद्र सरकार की राह पर काम कर रही हैं।
गौरतलब है कि पेड़ों के साथ पली-बढ़ी महिलाओं ने नम आंखों से पेड़ों को अंतिम विदाई दी। छत्तीसगढ़ सरकार ने अडानी को यहां से कोयला निकालने का ठेका दिया है। आदिवासी तीन साल से इसका विरोध कर रहे हैं। 85% ग्रामीणों ने मुआवजा तक नहीं लिया। आदिवासी 300 किमी तक पैदल चलकर राज्यपाल से भी मिले। लेकिन फायदा नहीं हुआ। पेड़ों की कटाई शुरू हो चुकी है। ग्रामसभाओं के भारी विरोध के बावजूद राज्य की भूपेश सरकार नहीं पिघली।