ताजमहल को बाढ़ के पानी से नुकसान नहीं होगा फायदा! जानिए शाहजहां ने ताजमहेल के निर्माण के लिए यमुना का किनारा ही क्यों चुना?
हमेशा से सवाल उठता रहा है कि शाहजहां ने यमुना नदी के किनारे ही ताजमहल क्यों बनवाया है। इसके पीछे कई तर्क दिए जाते रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के आगरा में युमना नदी अपने उफान पर है। यमुना का जल स्तर इतना बढ़ गया है कि ये ताजमहल को छूकर बह रही है। अब सवाल उठता है कि अगर यमुना का पानी ताजमहल को लगातार छूता रहेगा तो इससे उसको नुकसान हो सकता है। भवनों को अक्सर नमी वाले क्षेत्रों से दूर बनाया जाता है, लेकिन शाहजहां ने ताजमहल को बनवाने के लिए आखिर यमुना का किनार क्यों चुना, इसके पीछे भी बड़ी वजह बताई जाती रही है। आइए जानते हैं...
मुगल सम्राट शाहजहां ने ताजमहल को खास वास्तुकला की वजह से यमुना किनारे बनवाया था। बताया जाता है कि 50 कुओं पर यमुना की नींव टिकी हुई है। पूरी इमारत का वजन इन कुओं पर है। निर्माण के समय इन कुओं में आबनूस और महोगनी की लड़कियों के लट्ठे डाले गए थे। इन कुओं को ऐसा डिजाइन किया गया था कि यमुना नदी से इन्हें नमी मिलती रहे, क्योंकि कुओं के अंदर पड़ी लड़कियों को जितनी ज्यादा नमी मिलती रहेगी, उतनी ज्यादा ताजमहल की मजबूती बनी रहेगी। एएसआई के एक अधिकारी के अनुसार, ताजमहल की नींव में बने कुओं को लगातार पानी मिलना जरूरी होता है, अगर इनको पानी नहीं मिलेगा तो ये असुरक्षित हो जाएगा।
आबनूस की लकड़ी का इस्तेमाल इमारती सामान बनाने में ज्यादा किया जाता है। इसका कारण है कि ये भीगने पर और मजबूत होती। ये भीगने पर न सड़ती है और न ही सिकुड़ती और न बढ़ती है। वहीं, महोगनी की लकड़ी की बात करें तो ये भी एक अलग तरह की होती है। इस पर भी पानी का कोई असर नहीं होता है। इस लकड़ी का इस्तेमाल जहाज, फर्नीचर, प्लाईवुड, सजावट की चीजों और मूर्तियों को बनाने में किया जाता है। अपने औषधीय गुण के कारण इस लकड़ी में कोई भी रोग नहीं लगता है।